DESCRIPTION:- सभी रागनी प्रेमिये को ललित जांगड़ा की तरफ से राम राम , हमारी संस्कृति को कायम रखने में एक छोटा सा सहयोग कर रहा हु , जो हमारे महा कलाकारों की लिखी हुई गयी हुई रागनी, भजन , सांग और अन्य अस्त लिखी कवियों की कलम दवारा पिरोये हुवे छंद आपके सामने ला रहा हु , जो आपको और हमारे कलाकारों का सहयोग करेंगी , आप सब का तह दिल से धन्यवाद्

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घडिया थके के चला हरिस्चन्द्र , पानी ढोंण लागरया रे करके पिछली बात याद गंगा पे रोंण लागरया रे

 घडिया थके के चला हरिस्चन्द्र , पानी  ढोंण लागरया  रे 

करके  पिछली   बात  याद  गंगा  पे  रोंण  लागरया    रे            --टेक



अवधपुरी के राजतख़्त पे बैठा हुकम चलाया करता 

तेल फुलेल इत्तर केशर कस्तूरी तक छिडकया करता 

आम फल वर्क मिठाई दूध मालिन्दे खाया करता .

मखमल के गद्दे पे फुल सुनहरी तकिये लाया करता 

बिछवाया करता पिलंग आज धरती पे सोण लागरया रे 

दिन रात गात में भूख रहे बड़ा चला होण लागरया रे ...........................। 


मोहर असर्फी माल खजाने खेल्या करता धन के माह। 

सर खुल्या मेरे पैर उघाड़े कोन्या कपडा तन के माह 

हे ईशवर तने कोढ़ करि टारे चम्कदे दिन के माह 

मरना सर की सर रहरया सेव् कोन्या कसार विघ्न के माह 

टक्कर मरी छार घाट के जी खोण लागरया रे 

जमना जी में छाल मार के शयन लकोण लागरया रे ............................। 


राज पाट का मालिक था दिया भंगी के बैच शरीर  मने 

रोहताश कुंवर दिया बेच बेची मदनावत बीर मने 

देश दुनिया का राजा था धोखा देगी तक़दीर मने 

पालकिया में चल्या करता आज डोना पड़ग्या नीर मने 

करि नहीं तब्दीर मने दुःख सेल चाभोण लागरया रे 

सरयू जी के कंठारे पे आंसू धोण लागरया रे ....................................। 


में निर्धन कंगाल जमा ईशवर के घर संभल नहीं 

कर्म कर्म उगल पत्थर में बढ़गे कुछ भी देख्या माल नहीं 

रेख टालना विघ्ना की होती कर्मा की ताल नहीं 

हाथ जोड़के अरज कारु आता दुखिया का काल नहीं 

आते देखे मनुष्य घाट पे शयन लकोण लागरया रे 

बेस मुंशीराम जंडली में कविताई टोन लागरया रे ..............................। 


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सभी रागनी प्रेमिये को ललित जांगड़ा की तरफ से राम राम , हम हरियाणा वासी है और हमारी संस्कृति एक स्यान है, और मुझे गर्व है की में हरियाणा की पवन संस्कति में पला बड़ा हु , मेरी संगीत कला में बहुत बहुत रूचि है में एक अच्छा बैंजो प्लेयर भी हु हिसार जिले में थुराणा गॉव का रहने वाला हु ,

हमारी संस्कृति को कायम रखने में एक छोटा सा सहयोग कर रहा हु , जो हमारे महा कलाकारों की लिखी हुई गयी हुई रागनी, भजन , सांग और अन्य अस्त लिखी कवियों की कलम दवारा पिरोये हुवे छंद आपके सामने ला रहा हु , जो आपको और हमारे कलाकारों का सहयोग करेंगी ,


में २००५ से ब्लॉग्गिंग के बारे में पड़ता आ रहा था , पड़ते पड़ते मुझको भी इस फिल्ड में इंट्रेस्ट आने लगा ऐसे ऐसे होता रहा और में ब्लॉग्गिंग की दुनिआ में उतर पड़ा और देखते ही देखते ऐसी लत लग गई की इसके बिना मुझे नींद तक नहीं आती ये सब आप लोगो का प्यार है जो मुझे यहाँ तक खींच लाया |

आप सब का तह दिल से धन्यवाद्