1
किसान की मुसीबत नैं जाणै सै किसान
लूट-खसोट मचावणियां तूं के जाणै बेईमान
माह, पोह के पाळे म्हं भी लाणा पाणी हो
दिन रात रहे, जा बंध पै कस्सी बजाणी हो
गिरड़ी फेरां, सुहागी, कई बै बहाहणी हो
पाच्छै बीज गेरया जा, आशा हर तैं लाणी हो
छोट-छोटे पौधे उपजैं जमींदार की ज्यान
इन पौध्यां नैं अपणे खून की खुबकाई दे
ऊंची-ऊंची बाड़ करै और खोद खाई दे
म्हारे खून के कतरे के दाणे बणे दिखाई दे
उन दाण्यां नैं तूं लेज्या हम माल उघाई दे
जमींदार की मौत होया करै चौगुणा लगान
किसान के दुश्मन गिणाऊं सुन्ने, डांगर, ढोर
कतरा, मकड़ा, काबर, घुग्गी, काग मचावै शोर
टीड्डी, कड़का, गादड़ लोबा, सूरों तक का जोर
तोता सिरडी काट कै लेज्या, कोर चूंटज्या मोर
गोलिए और चिड़िया चुगज्यां, चरज्यां मिरग मैदान
कहै धनपत सिंह तनैं किसान सताए बदमाशी पूरी सै
अंत को ज्वाल क है सै मिलै जरूरी सै
म्हारा खून पसीना बंद करकै तनैं भरी तजूरी सै
ल्या उन बंदयां नैं बांटू या जिसकी मजदूरी सै
तूं खटरस, मिठरस, शराब, कवाब खा, भूक्खा मरै जिहान
2
सात जणी का हे मां मेरी झूमका, हेरी कोए रळ मिल झूलण जा,
झूल घली सै हे मां बाग म्हं
कोए-कोए किसे की बाट म्हं ठहर रही री
कोए तीळ सिंधारे आळी पहर रही री
जो कोए राक्खी ब्याह
छोरे हांगा लारे पींघ पै री
दो छोरी झट बैट्ठी पींघ पै री
दो रही लंगर ठा
झूंटा चड्ढ्या गगन अटाक था री
झट सासु का तोड़ा नाक था री
हेरी लंबा हाथ लफा
आम के पेड़ कै नीच्चै खड्या री
सब की नजरां एकदम आ पड्या री
उड़ै ‘धनपत सिंह’ भी था
झूल घली सै हे मां बाग म्हं
कोए-कोए किसे की बाट म्हं ठहर रही री
कोए तीळ सिंधारे आळी पहर रही री
जो कोए राक्खी ब्याह
छोरे हांगा लारे पींघ पै री
दो छोरी झट बैट्ठी पींघ पै री
दो रही लंगर ठा
झूंटा चड्ढ्या गगन अटाक था री
झट सासु का तोड़ा नाक था री
हेरी लंबा हाथ लफा
आम के पेड़ कै नीच्चै खड्या री
सब की नजरां एकदम आ पड्या री
उड़ै ‘धनपत सिंह’ भी था
3
तुम जाओ सुसरा सास,
समझा ल्यूंगी जब आज्यागा मेरे पास
मेरे बुझे ताझे बिना कित भरतार जावैगा
मेरा वो गुनाहगार क्यूकर तजकै नार जावैगा
धमका दयूंगी करड़ी हो कै क्यूकर बाहर जावैगा
हो मनैं सै पक्का विश्वास
कहैगा पलंग की मै नाटज्यां बिछावण नैं
साबुण, तेल मांगैगा मैं पाणी दयूं ना न्हावण नैं
राख दयूंगी भूखा उसनैं भोजन दयूं ना खावण नैं
देखां कै उसकी गुंज्याश
जो बीर मर्द नैं कहया करै सै कह मैं बात हजार दयूंगी
नाक के म्हं दम आज्या कर मैं ऐसी कार दयूंगी
कमरे के म्हं रोक कै नैं आग्गै ताळा मार दयूंगी
हेरी फेर कित जागा बदमाश
जो बीर मर्द तैं करया करै सैं करूं मरोड़ ल्यूंगी
प्यार, मोहब्बत, सेवा करकै भाग दौड़ थाम ल्यूंगी
कहै ‘धनपत सिंह’ निंदाणे के नैं हाथ जोड़ थाम ल्यूंगी
सदा रहूं चरण की दास
समझा ल्यूंगी जब आज्यागा मेरे पास
मेरे बुझे ताझे बिना कित भरतार जावैगा
मेरा वो गुनाहगार क्यूकर तजकै नार जावैगा
धमका दयूंगी करड़ी हो कै क्यूकर बाहर जावैगा
हो मनैं सै पक्का विश्वास
कहैगा पलंग की मै नाटज्यां बिछावण नैं
साबुण, तेल मांगैगा मैं पाणी दयूं ना न्हावण नैं
राख दयूंगी भूखा उसनैं भोजन दयूं ना खावण नैं
देखां कै उसकी गुंज्याश
जो बीर मर्द नैं कहया करै सै कह मैं बात हजार दयूंगी
नाक के म्हं दम आज्या कर मैं ऐसी कार दयूंगी
कमरे के म्हं रोक कै नैं आग्गै ताळा मार दयूंगी
हेरी फेर कित जागा बदमाश
जो बीर मर्द तैं करया करै सैं करूं मरोड़ ल्यूंगी
प्यार, मोहब्बत, सेवा करकै भाग दौड़ थाम ल्यूंगी
कहै ‘धनपत सिंह’ निंदाणे के नैं हाथ जोड़ थाम ल्यूंगी
सदा रहूं चरण की दास
4
पाक है मोहब्बत म्हारी ना हे बदमाशी
हीरामल तैं पहल्यां मनैं टुटणा है फांसी
पाक मोहब्बत दुनियां के म्हं सबतैं बड़ी करारी हो सै
फेर जी के लेणा हो सै जब अलग इलम का यारी हो सै
सबतैं बुरी बिमारी हो सै तपेदिक की खांसी
देख भाळ कै काम करो क्यूं खोट्टी मन म्हं ठाणता
इस महरग़ के मारयां नैं और कोए नहीं पिछाणता
हम जाणां या म्हारा जाणता म्हारी तबीयत की तलाशी
पाक मोहब्बत उलफत का बिलकुल झूठा पाळा होज्या
पहल्यां प्यार बणाले फेर साथ रहण का ढाळा होज्या
दरगाह म्हं मुंह काळा होज्या दुनियां करै हांसी
राम, रहीम म्हं फरक नहीं ना कोए किसे तैं हीणा हो सै
‘धनपत सिंह’ ओम’, अल्लाह का एक ही रकीणा हो सै
मथुरा वोहे, मदीणा हो सै, काबा वोहे कांशी
हीरामल तैं पहल्यां मनैं टुटणा है फांसी
पाक मोहब्बत दुनियां के म्हं सबतैं बड़ी करारी हो सै
फेर जी के लेणा हो सै जब अलग इलम का यारी हो सै
सबतैं बुरी बिमारी हो सै तपेदिक की खांसी
देख भाळ कै काम करो क्यूं खोट्टी मन म्हं ठाणता
इस महरग़ के मारयां नैं और कोए नहीं पिछाणता
हम जाणां या म्हारा जाणता म्हारी तबीयत की तलाशी
पाक मोहब्बत उलफत का बिलकुल झूठा पाळा होज्या
पहल्यां प्यार बणाले फेर साथ रहण का ढाळा होज्या
दरगाह म्हं मुंह काळा होज्या दुनियां करै हांसी
राम, रहीम म्हं फरक नहीं ना कोए किसे तैं हीणा हो सै
‘धनपत सिंह’ ओम’, अल्लाह का एक ही रकीणा हो सै
मथुरा वोहे, मदीणा हो सै, काबा वोहे कांशी
5
हळ जोतै खेत कमाबै जगपालन जमीदार हो सैं
चाक घुमावै बास्सण तारै वोहे लोग कुम्हार हो सैं
क्यूं लागी मनैं विसवासण, हम घड़ते माट्टी के बास्सण
तांबे और पीतळ के कास्सण हर कसबे म्हं त्यार हों सैं
पर म्हारा चाक किसैके बस का कोन्यां, गोड्यां तलक लाचार हों सैं
एक जगह इंसाफ, जब म्हारे पंच जुड्यां करैं आप
तीन खाप म्हारी तीन किसम की मुसमान कुछ माहर हों सैं
पंच फैंसले पंचायत म्हं गोळे भी म्हाएं सुमार हो सैं
ये माने ऋषि मुनियां म्हं, मूढ और गुनियां म्हं
हिल्ले रिजक दुनियां म्हं, अप-अपणे रूजगार हो सैं
जो सहम आदमी के गळ म्हं घलज्या, वो मेरे किसी बदकार हो सैं
जमनादास राम गुण जपणे, गुरू तेरे शीश कितै ना झुकणे
‘धनपत सिंह’ कदे ना अपणे, रंडी और नचार हो सैं
के लोंडे रंडी का प्यारा, ये तोते चिसम मक्कार हों सैं
चाक घुमावै बास्सण तारै वोहे लोग कुम्हार हो सैं
क्यूं लागी मनैं विसवासण, हम घड़ते माट्टी के बास्सण
तांबे और पीतळ के कास्सण हर कसबे म्हं त्यार हों सैं
पर म्हारा चाक किसैके बस का कोन्यां, गोड्यां तलक लाचार हों सैं
एक जगह इंसाफ, जब म्हारे पंच जुड्यां करैं आप
तीन खाप म्हारी तीन किसम की मुसमान कुछ माहर हों सैं
पंच फैंसले पंचायत म्हं गोळे भी म्हाएं सुमार हो सैं
ये माने ऋषि मुनियां म्हं, मूढ और गुनियां म्हं
हिल्ले रिजक दुनियां म्हं, अप-अपणे रूजगार हो सैं
जो सहम आदमी के गळ म्हं घलज्या, वो मेरे किसी बदकार हो सैं
जमनादास राम गुण जपणे, गुरू तेरे शीश कितै ना झुकणे
‘धनपत सिंह’ कदे ना अपणे, रंडी और नचार हो सैं
के लोंडे रंडी का प्यारा, ये तोते चिसम मक्कार हों सैं
6
मेरी बेट्टी यू के हाल सासरै घाल्ली थी
बनड़ी बणकै मेरे ढूंड तैं जा ली थी
जिसकी बेट्टी इसी दुखी वा क्यूकर जीवै मात
काठ के कोयले होया करैं पेड़ बिना फल पात
बिल्कुल ना रही गात बदन पै लाली थी
तनैं छोड़ कै गई घरां मनैं सब कुछ लाग्या फीक्का
तेरे बिना हे मेरी बेटी घर म्हं कुछ ना दीक्खया
एक बाळक नैं छींक्या था जब तेरी डोळी चाली थी
मां बिन बेट्टी इसी जगत म्हं, जिसा बाग बिना माळी
काठ के कोयले होया करै सै जो बिना पेड़ फल, डाळी
उस खेत म्हं आकै बणी रूखाळी, मनैं बनड़ी भेजी ब्याहली थी
कहै ‘धनपत सिंह’ सुण मेरी बेट्टी किस्मत आग्गै अड़गी
देई, धाम ना पूज्जण पाई पिया तैं बिछड़गी
विपता म्हं विपता पड़गी और भतेरी काल्ली थी
बनड़ी बणकै मेरे ढूंड तैं जा ली थी
जिसकी बेट्टी इसी दुखी वा क्यूकर जीवै मात
काठ के कोयले होया करैं पेड़ बिना फल पात
बिल्कुल ना रही गात बदन पै लाली थी
तनैं छोड़ कै गई घरां मनैं सब कुछ लाग्या फीक्का
तेरे बिना हे मेरी बेटी घर म्हं कुछ ना दीक्खया
एक बाळक नैं छींक्या था जब तेरी डोळी चाली थी
मां बिन बेट्टी इसी जगत म्हं, जिसा बाग बिना माळी
काठ के कोयले होया करै सै जो बिना पेड़ फल, डाळी
उस खेत म्हं आकै बणी रूखाळी, मनैं बनड़ी भेजी ब्याहली थी
कहै ‘धनपत सिंह’ सुण मेरी बेट्टी किस्मत आग्गै अड़गी
देई, धाम ना पूज्जण पाई पिया तैं बिछड़गी
विपता म्हं विपता पड़गी और भतेरी काल्ली थी
7
कलम घिसे और दवात सुकज्या हरफ लिखणियां थक ले
रै मेरी इसी पढ़ाई नैं कौणा लिखणियां लिख ले
इतणै भूक्खा मरणा हो इतणै वा झाल मिलै ना
गुमसुम रहैगा बंदा इतणै ख्याल में ख्याल मिलै ना
जब तक सागर ताल मिलै ना, बता हंस कड़े तैं छिक ले
इश्क बिमारी हो खोटी मरणे म्हं कसर करै ना
इसा बहम का नाग बताया लड़ज्या वो निसार करै ना
दवा, इंजैक्शन असर करै ना जब गुप्त गुमड़ा पक ले
चोर, जार, बदमाश, ऊत मनैं दुनिया कहै लुंगाड़ा
जीवै ना मरै रहै तड़फता जिकै लाग्गै नैन दुगाड़ा
बहम का बरतन इसा उघाड़ा, कौण ढकणियां ढक ले
एक कातिल एक कतल करावै दोनों म्हं धर्म करकै
‘धनपत सिंह’ कहे जा साच्ची, साच्ची म्हं शर्म करकै
कर्म के आग्गै भरम करकै चाहे जमाना बक ले
रै मेरी इसी पढ़ाई नैं कौणा लिखणियां लिख ले
इतणै भूक्खा मरणा हो इतणै वा झाल मिलै ना
गुमसुम रहैगा बंदा इतणै ख्याल में ख्याल मिलै ना
जब तक सागर ताल मिलै ना, बता हंस कड़े तैं छिक ले
इश्क बिमारी हो खोटी मरणे म्हं कसर करै ना
इसा बहम का नाग बताया लड़ज्या वो निसार करै ना
दवा, इंजैक्शन असर करै ना जब गुप्त गुमड़ा पक ले
चोर, जार, बदमाश, ऊत मनैं दुनिया कहै लुंगाड़ा
जीवै ना मरै रहै तड़फता जिकै लाग्गै नैन दुगाड़ा
बहम का बरतन इसा उघाड़ा, कौण ढकणियां ढक ले
एक कातिल एक कतल करावै दोनों म्हं धर्म करकै
‘धनपत सिंह’ कहे जा साच्ची, साच्ची म्हं शर्म करकै
कर्म के आग्गै भरम करकै चाहे जमाना बक ले
8
हे तूं बालम के घर जाइये चंद्रमा,
जाइये चंद्रमा और के चाहिये चंद्रमा
आज सखीयां तैं चाली पट, दो बात सुणैं नैं म्हारी डट
घूंघट तणना मुश्किल, बोहड़ीया बणना मुश्किल, जमणा मुश्किल
हे ईश्वर का सुकर मनाईये चंद्रमा
दिए पीट गुस्से से मुंडी, किसमत की खुलगी घुंडी
आच्छी भुंडी सहिए, मतना उल्टी कहिए, सब की दासी रहिए
म्हारा इतणा कहण पुगाईये चंद्रमा
घणी सुणकै होज्या थोड़ी, तूं जौहरी यो लाल करोड़ी
जोड़ी मिलगी सही, ऐसी देखी नहीं, कसर इब कौणसी रही
हंस खेल कूदिए खाईये चंद्रमा
ढंग ‘धनपत सिंह’ बदले हर सन, बनवारी लाल हो प्रसन्न
दर्शन मेली रहिए, ना अकेली रहिए, तूं सब की चेली रहिए
फेर नाम देश म्हं पाइये
जाइये चंद्रमा और के चाहिये चंद्रमा
आज सखीयां तैं चाली पट, दो बात सुणैं नैं म्हारी डट
घूंघट तणना मुश्किल, बोहड़ीया बणना मुश्किल, जमणा मुश्किल
हे ईश्वर का सुकर मनाईये चंद्रमा
दिए पीट गुस्से से मुंडी, किसमत की खुलगी घुंडी
आच्छी भुंडी सहिए, मतना उल्टी कहिए, सब की दासी रहिए
म्हारा इतणा कहण पुगाईये चंद्रमा
घणी सुणकै होज्या थोड़ी, तूं जौहरी यो लाल करोड़ी
जोड़ी मिलगी सही, ऐसी देखी नहीं, कसर इब कौणसी रही
हंस खेल कूदिए खाईये चंद्रमा
ढंग ‘धनपत सिंह’ बदले हर सन, बनवारी लाल हो प्रसन्न
दर्शन मेली रहिए, ना अकेली रहिए, तूं सब की चेली रहिए
फेर नाम देश म्हं पाइये
9
जमाना ही चोर है, पक्षी-पाखेरू क्या ढोर है
कोये-कोये चोर है जग म्हं लीलो आने और दो आने का
जवाहर का चोर है कोय, कोय है चोर खजाने का
जिसी चोरी करै उसी बोर है
चोरी करे बिना लीलो इस जग म्हं कोण रहया जा सै
कोये अन्ना का चोर कोये धन का चोर, कोये दिल का चोर कहया जा सै
दिल चौरी नैं सहज्या कमजोर है
काळा चोर कोये मुसकी चोर, कोये गौरा चोर कहया जा सै
ये छोहरी चोर घणी होती, कोई छोरा चोर कहया जा सै
किसे की दबज्या किसै का शोर है
कोये-कोये चोर लगे दुश्मन कोये प्यारा भी होगा
तूं हमनैं चोर बणावै सै, कोये चोर हमारा भी होगा
कहै ‘धनपत सिंह’ लीलो मछोर है
कोये-कोये चोर है जग म्हं लीलो आने और दो आने का
जवाहर का चोर है कोय, कोय है चोर खजाने का
जिसी चोरी करै उसी बोर है
चोरी करे बिना लीलो इस जग म्हं कोण रहया जा सै
कोये अन्ना का चोर कोये धन का चोर, कोये दिल का चोर कहया जा सै
दिल चौरी नैं सहज्या कमजोर है
काळा चोर कोये मुसकी चोर, कोये गौरा चोर कहया जा सै
ये छोहरी चोर घणी होती, कोई छोरा चोर कहया जा सै
किसे की दबज्या किसै का शोर है
कोये-कोये चोर लगे दुश्मन कोये प्यारा भी होगा
तूं हमनैं चोर बणावै सै, कोये चोर हमारा भी होगा
कहै ‘धनपत सिंह’ लीलो मछोर है
10
मेरा जोबन, तन, मन बिघन करै, कुछ जतन बणा मेरी सास
दिन रैन चैन नहीं पिया बिना, छ: ऋतु बारहा मास
चैत्त चाहता चित चोर को चले गए चतर सुजान
चित के मिले ना चौधरी हुई चिंता म्हं गलतान
चंदा दूर चकोर चकूर म्हं क्यूकर जा असमान
चक चांद अचानक आण चढ्या हुई चमक पै कुरबान
जिसको चैत चंचल चाहता चल जे चल पिया के पास
बसाख म्हं बसणा मुश्कल हो टाळे नहीं टळै
बसाख म्हं बीवी बालम मिलकै नाहण चलै
बसाख म्हं भारी भ्रम हुआ जो बालम बिन नहीं जळै
हम सारी मुरझा गई और फुलवाडी फूल खिलै
बसाख म्हं भंवरा गूंज रहया हो सख्त पिया की ख्यास
जेठ जटा सिर के खुले किते कल्प राजकंवार
निरजला एकादसी गंगा जन्म का गलती होया त्यौहार
जेठ जुल्म की धूप पड़ै कितै तपता हो भरतार
सरद सुराही शीतल जल की पी बिन जहर सुमार
बिन ब्याहे के प्यासे बिन ना मिटै देह की प्यास
साढ पिया बिन ठाढ नहीं जीवन काढ कमाल
भंवरे देत गुंजार सरद शीतली जल के भरे ताल
गुलरंग हजारा देक्खूं नो बालम की शकल पर ख्याल
बिजळी की चमक पर नजर पड़ै तो याद करूं भोपाल
बालम बिना बिलक कै देक्खूं बालम चढ़े अकाश
दिन रैन चैन नहीं पिया बिना, छ: ऋतु बारहा मास
चैत्त चाहता चित चोर को चले गए चतर सुजान
चित के मिले ना चौधरी हुई चिंता म्हं गलतान
चंदा दूर चकोर चकूर म्हं क्यूकर जा असमान
चक चांद अचानक आण चढ्या हुई चमक पै कुरबान
जिसको चैत चंचल चाहता चल जे चल पिया के पास
बसाख म्हं बसणा मुश्कल हो टाळे नहीं टळै
बसाख म्हं बीवी बालम मिलकै नाहण चलै
बसाख म्हं भारी भ्रम हुआ जो बालम बिन नहीं जळै
हम सारी मुरझा गई और फुलवाडी फूल खिलै
बसाख म्हं भंवरा गूंज रहया हो सख्त पिया की ख्यास
जेठ जटा सिर के खुले किते कल्प राजकंवार
निरजला एकादसी गंगा जन्म का गलती होया त्यौहार
जेठ जुल्म की धूप पड़ै कितै तपता हो भरतार
सरद सुराही शीतल जल की पी बिन जहर सुमार
बिन ब्याहे के प्यासे बिन ना मिटै देह की प्यास
साढ पिया बिन ठाढ नहीं जीवन काढ कमाल
भंवरे देत गुंजार सरद शीतली जल के भरे ताल
गुलरंग हजारा देक्खूं नो बालम की शकल पर ख्याल
बिजळी की चमक पर नजर पड़ै तो याद करूं भोपाल
बालम बिना बिलक कै देक्खूं बालम चढ़े अकाश
सामणा समो सुहावनी सब सिंगरी सखी सहेली
झूल्लण चाली बाग्गां के म्हं पीछे पाटड़ी ले ली
सब सिंगरी हांडै बीर सास्सू जिनके मन के गेली
हम सोळा निर्भाग चंदड़ी पी बिन किसी अकेली
दिलबर की हरियाली बिन सब सूखे बण, फळ, घास
भादों भिष्ट की खान री जगत म्हं मरता गिन वके निशानी
पी-पी करै पपीहा कोयल बोल्लै बानी
सब जन्माष्टमी व्रत करैं हम नैं मोटी किलकानी
भादु की रात अंधेरी म्हं डरै पिया की राणी
भादु म्हं भरतार बिना भ्रमत का मन बणोवास
आसौज ऐश असरत गई पिया प्यारे के साथ
दिन पर्वत सा दिखता सर सागर सी रात
हर जगह न्यौरते बंटते हैं हम सोळा खाली हाथ
पिया दर्शन बिना किसा दशहरा दिशा चढी सिर गात
क्यूकर सुणां रामायण राम बिन सीता हुई उदास
कंथ म्हं बिना कातिक म्हं कोतुक यो दुख होया धनेरा
कोयल कूकै कोकिला बोलै जी लिकड़ जा मेरा
आदी दिवाळी लक्ष्मी पूजा सुन्ना रहग्या डेरा
आई लीपै पोतै दीवे लावैं पी बिन म्हारै अंधेरा
दिलबर बिना देव ना जागे आई देवठणी ग्यास
मंगसर फाड्डा रंगसर री बालम बिन कहो के ढंग हो
मन मचल मरोड़ मारै सै साजन बिन कहो के ढंग हो
जब मंगसर म्हं मन मस्त रहै मन मोहन मोहकै संग हो
जिनके मंगसर म्हं पिया पास नहीं उनकी करणी म्हं भंग हो
मंगसर म्हं रही पिया बिना मिटी सरदी की चास
पोह पाळा पल-पल पड़ता है थर-थर कांपण लागी
पिया बिना पार पड़ै ना आतिस की अंगीठी जागी
हम सिर मार के मरां सेज साजन बिन सुन्नी लागी
पोह म्हं भी रही पिया बिना हम सोळा निर्भागी
पोह म्हं भी पास नहीं के इसतैं बदत्ती नाश
माह में जब मस्त रहे महाराज पास रणधीर
आई बसंत पंचमी पूज्जैं सिंगरी हांडैं बीर
पिया बिना हम किसपै ओड्डां जरद बसंती चीर
सोळा रहगी शीत मारती माह का भी हुआ आखिर
बिन भरतार भला ना होता भड़क भ्रम विश्वास
फाग फगुवा फुलग्या पिया संग खेल्लैं फाग
लाल गुलाल हरे रंग धोळे जन्म सुफल सुहाग
मृदंग पखावज ढ्प्प बाजैं गावैं होळी के राग
कहै ‘धनपत सिंह’ रही पिया बिन री हम सोळा निर्भाग
जमवा मीर बीर का पी बिन सब फीका रंगरास
11
मात, पिता और भाई, ब्याही, सब नकली परिवार
दुनियां के म्हं बड़ा बताया पगड़ी बदला यार
किरसन और सुदामा यारी लाए सुणे हों
एक ब्राह्मण और एक हीर कै जाए सुणे हों
एक रोज सुदामा किरसन के घर आए सुणे हों
सुदामा जी के चावल हर नैं खाए सुणे हों
फेर सुदामा का किरसन नैं करया आप किसा घरबार
महाराणा प्रताप सुणे हों बहादुर वीर थे
अकबर शाह के स्याहमी जिसके चाल्ले तीर थे
छूट गई चित्तौड़ बण म्हं बणे फकीर थे
रोटी के मोहताज कपड़े लीरम लीर थे
पड्या वक्त पै टूट के एक भामाशाह साहुकार
अमर सिंह राठोड़ सुणया हो कैसा महाराज था
नौ कोठी मारवाड़ म्हं राजों का ताज था
अर्जुन गोड नैं मार दिया साळा बे लिहाज था
कैथल का पठान सुणया हो नरशेबाज था
अमर सिंह की ल्हाश के ऊपर पड्या टूट ललकार
एक जोधापुर का जैमल सच्चा रजपूत था
उसका चाचा मालदेव असली कमकूत था
बाप बेट्टयां की हुई लड़ाई बाज्या जूत था
उस जैमल का दोस्त दिलदार खां काफी मजबूत था
कहै ‘धनपत सिंह’ बाप नैं बेटा, बेटे नैं बाप दिया मार
दुनियां के म्हं बड़ा बताया पगड़ी बदला यार
किरसन और सुदामा यारी लाए सुणे हों
एक ब्राह्मण और एक हीर कै जाए सुणे हों
एक रोज सुदामा किरसन के घर आए सुणे हों
सुदामा जी के चावल हर नैं खाए सुणे हों
फेर सुदामा का किरसन नैं करया आप किसा घरबार
महाराणा प्रताप सुणे हों बहादुर वीर थे
अकबर शाह के स्याहमी जिसके चाल्ले तीर थे
छूट गई चित्तौड़ बण म्हं बणे फकीर थे
रोटी के मोहताज कपड़े लीरम लीर थे
पड्या वक्त पै टूट के एक भामाशाह साहुकार
अमर सिंह राठोड़ सुणया हो कैसा महाराज था
नौ कोठी मारवाड़ म्हं राजों का ताज था
अर्जुन गोड नैं मार दिया साळा बे लिहाज था
कैथल का पठान सुणया हो नरशेबाज था
अमर सिंह की ल्हाश के ऊपर पड्या टूट ललकार
एक जोधापुर का जैमल सच्चा रजपूत था
उसका चाचा मालदेव असली कमकूत था
बाप बेट्टयां की हुई लड़ाई बाज्या जूत था
उस जैमल का दोस्त दिलदार खां काफी मजबूत था
कहै ‘धनपत सिंह’ बाप नैं बेटा, बेटे नैं बाप दिया मार
12
इसाए जी हो गरीब्बां जो अन्न पाणी वो दास
इसीए हो सै भूख जयसिंह इसी एक होया कर प्यास
सांप के पिलाणे तैं भाई बणै दूध का जहर
प्यार मोहब्बत असनाई चाहिए बराबरीयां तैं बैर
चाए रोवो चाए गिड़गिड़ाओ कोई, तुम अपणी मांगे जा खैर
लूट, खसोट तबाह कर दे इसा तोल दिया कहर
तूं दो दिन म्हं दुख पाग्या हम दुख पावैं बारहा मास
कोए भूक्खा रहवै अर दिन रात कमाए जा
तूं फळी तक ना फोड़ै माल हरामी खाए जा
कोए माट्टी गेल्यां माट्टी हो तूं छाड़ बर नहाया जा
किसै नैं खाट भी नहीं मिलती तूं तकिए लाए जा
किसे की झुपड़ी भी फुक्की जा, तेरा बंगल्यां म्हं बास
गरीबों ऊपर ठाड्यां का कोए ताण ना चाहिए
करै दिन रात घुळाई दुखी किसान ना चाहिए
जो पुगण में ना आवै इसा लगान ना चाहिए
तूं पांच की वसूली म्हं करता है पचास
हिम्मत एक तो तूं जाईए, दो-चार और जाओ
असला भी लो साथ म्हं और हथियार भी ठाओ
इतणै आंख्यां पर तै पट्टी खोल्लण ना पाओ
जब तक इस जंगल तै बाहरणे छोड़ ना आओ
कहैं ‘धनपत सिंह’ इसनैं जी तैं मार दयूं जै फेर बणैं बदमाश
इसीए हो सै भूख जयसिंह इसी एक होया कर प्यास
सांप के पिलाणे तैं भाई बणै दूध का जहर
प्यार मोहब्बत असनाई चाहिए बराबरीयां तैं बैर
चाए रोवो चाए गिड़गिड़ाओ कोई, तुम अपणी मांगे जा खैर
लूट, खसोट तबाह कर दे इसा तोल दिया कहर
तूं दो दिन म्हं दुख पाग्या हम दुख पावैं बारहा मास
कोए भूक्खा रहवै अर दिन रात कमाए जा
तूं फळी तक ना फोड़ै माल हरामी खाए जा
कोए माट्टी गेल्यां माट्टी हो तूं छाड़ बर नहाया जा
किसै नैं खाट भी नहीं मिलती तूं तकिए लाए जा
किसे की झुपड़ी भी फुक्की जा, तेरा बंगल्यां म्हं बास
गरीबों ऊपर ठाड्यां का कोए ताण ना चाहिए
करै दिन रात घुळाई दुखी किसान ना चाहिए
जो पुगण में ना आवै इसा लगान ना चाहिए
तूं पांच की वसूली म्हं करता है पचास
हिम्मत एक तो तूं जाईए, दो-चार और जाओ
असला भी लो साथ म्हं और हथियार भी ठाओ
इतणै आंख्यां पर तै पट्टी खोल्लण ना पाओ
जब तक इस जंगल तै बाहरणे छोड़ ना आओ
कहैं ‘धनपत सिंह’ इसनैं जी तैं मार दयूं जै फेर बणैं बदमाश
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सभी रागनी प्रेमिये को ललित जांगड़ा की तरफ से राम राम , हम हरियाणा वासी है और हमारी संस्कृति एक स्यान है, और मुझे गर्व है की में हरियाणा की पवन संस्कति में पला बड़ा हु , मेरी संगीत कला में बहुत बहुत रूचि है में एक अच्छा बैंजो प्लेयर भी हु हिसार जिले में थुराणा गॉव का रहने वाला हु ,
हमारी संस्कृति को कायम रखने में एक छोटा सा सहयोग कर रहा हु , जो हमारे महा कलाकारों की लिखी हुई गयी हुई रागनी, भजन , सांग और अन्य अस्त लिखी कवियों की कलम दवारा पिरोये हुवे छंद आपके सामने ला रहा हु , जो आपको और हमारे कलाकारों का सहयोग करेंगी ,
में २००५ से ब्लॉग्गिंग के बारे में पड़ता आ रहा था , पड़ते पड़ते मुझको भी इस फिल्ड में इंट्रेस्ट आने लगा ऐसे ऐसे होता रहा और में ब्लॉग्गिंग की दुनिआ में उतर पड़ा और देखते ही देखते ऐसी लत लग गई की इसके बिना मुझे नींद तक नहीं आती ये सब आप लोगो का प्यार है जो मुझे यहाँ तक खींच लाया |
आप सब का तह दिल से धन्यवाद्