मैं के उजाडू, तेरे बाग नै, मेरे चमन का चोर
आज तेरे बागा मैं पाया -
(1)मैं बेटा कहती हा कित धरती में टक्कर मारू
खड़ी में पुकारू तेरी जाग ने,
गई छूट हाथ ते डोर
मन कदे सूत्या भी ना. ठाया
(2) सुण नौ लखे बागां आले,
आज हुए तेरे बागों में चाले
मेरा पूत डसा काले नाग नै,
लाम्बी माड़ का मोर
मरा पड़ा फटका भी ना खाया
(3) लावै क्यूं अणदोषी के दोष,
मेरा जी जा लिया सौ-रकोस
मने होश नहीं से नरभाग नै,
मेरा कुछ ना चाल्या जोर
मेरी सब लुटगी च्चन माया
(4)कह लख्मीचन्द नगेगी कैसे,
राणी रुघन करण लगी ऐसे
जैसे अण्डा टा लिया काग नै कोयल करती शोर
बनेगी जो इश्वर नै चाहया...........
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सभी रागनी प्रेमिये को ललित जांगड़ा की तरफ से राम राम , हम हरियाणा वासी है और हमारी संस्कृति एक स्यान है, और मुझे गर्व है की में हरियाणा की पवन संस्कति में पला बड़ा हु , मेरी संगीत कला में बहुत बहुत रूचि है में एक अच्छा बैंजो प्लेयर भी हु हिसार जिले में थुराणा गॉव का रहने वाला हु ,
हमारी संस्कृति को कायम रखने में एक छोटा सा सहयोग कर रहा हु , जो हमारे महा कलाकारों की लिखी हुई गयी हुई रागनी, भजन , सांग और अन्य अस्त लिखी कवियों की कलम दवारा पिरोये हुवे छंद आपके सामने ला रहा हु , जो आपको और हमारे कलाकारों का सहयोग करेंगी ,
में २००५ से ब्लॉग्गिंग के बारे में पड़ता आ रहा था , पड़ते पड़ते मुझको भी इस फिल्ड में इंट्रेस्ट आने लगा ऐसे ऐसे होता रहा और में ब्लॉग्गिंग की दुनिआ में उतर पड़ा और देखते ही देखते ऐसी लत लग गई की इसके बिना मुझे नींद तक नहीं आती ये सब आप लोगो का प्यार है जो मुझे यहाँ तक खींच लाया |
आप सब का तह दिल से धन्यवाद्