मान मेरी मिश्राणी नहीं ते चाला होज्या गा
मुँह कला होज्या गा .........................।
तने नहीं से बेरा तू ते सहम मेरे ते लड़ती
यार पणे की बात आज या मेरे आगे अड़ती
मने न्यू पड़ती समझाणी खाण्ड का राला होज्या गा .....................।
मांगण जा ते मान घटे मत नरम जिगर ने छोले
क्यूकर जाके मांगूंगा या काया मेरी डोले
कोई बोले उलटी बाणी जीवण का टाला होज्या गा ........................।
ओढण पहरण खान पीन का और कोई टोह्वे जरिया
इब तलाक था पहाड़ बराबर मान घटे इस तरियां
म दरिया बहुत पुराणा एक दम नाला होज्या गा ............................।
अपनी अपनी बना कविता मुश्किल हो से गावणी
जगन्नाथ कहे इज्जत कोन्या अपने हाथ थामणि
या समय आवणि जाणी राम रुखाला होज्या गा ..................।
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सभी रागनी प्रेमिये को ललित जांगड़ा की तरफ से राम राम , हम हरियाणा वासी है और हमारी संस्कृति एक स्यान है, और मुझे गर्व है की में हरियाणा की पवन संस्कति में पला बड़ा हु , मेरी संगीत कला में बहुत बहुत रूचि है में एक अच्छा बैंजो प्लेयर भी हु हिसार जिले में थुराणा गॉव का रहने वाला हु ,
हमारी संस्कृति को कायम रखने में एक छोटा सा सहयोग कर रहा हु , जो हमारे महा कलाकारों की लिखी हुई गयी हुई रागनी, भजन , सांग और अन्य अस्त लिखी कवियों की कलम दवारा पिरोये हुवे छंद आपके सामने ला रहा हु , जो आपको और हमारे कलाकारों का सहयोग करेंगी ,
में २००५ से ब्लॉग्गिंग के बारे में पड़ता आ रहा था , पड़ते पड़ते मुझको भी इस फिल्ड में इंट्रेस्ट आने लगा ऐसे ऐसे होता रहा और में ब्लॉग्गिंग की दुनिआ में उतर पड़ा और देखते ही देखते ऐसी लत लग गई की इसके बिना मुझे नींद तक नहीं आती ये सब आप लोगो का प्यार है जो मुझे यहाँ तक खींच लाया |
आप सब का तह दिल से धन्यवाद्