DESCRIPTION:- सभी रागनी प्रेमिये को ललित जांगड़ा की तरफ से राम राम , हमारी संस्कृति को कायम रखने में एक छोटा सा सहयोग कर रहा हु , जो हमारे महा कलाकारों की लिखी हुई गयी हुई रागनी, भजन , सांग और अन्य अस्त लिखी कवियों की कलम दवारा पिरोये हुवे छंद आपके सामने ला रहा हु , जो आपको और हमारे कलाकारों का सहयोग करेंगी , आप सब का तह दिल से धन्यवाद्

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कातिक बदी अमावस थी और दिन था खास दिवाली का आँख्यां के मा आँसू आगे घर देख्या जब हाली का

 कातिक बदी अमावस थी और दिन था खास दिवाली का

आँख्यां के मा आँसू आगे घर देख्या जब हाली का 

१-

कित्ते खीर, पूरी-मांडे; खुसबू हलवे की ऊठय् रही

एक हाळी की बहु खड़ी कुण मैं, सेर बाजरा कूटय् रही

हाली आया, खाट गेरदी, वो पान्त्या कहां तै टूटय् रही

वो तैं होका भरकै बैठ गया, उसकी चल्यम तळे तै फूटय् रही 

चाक्की धोरै ज्रया होया ढंडुक पड़्या था फाळी का

कातिक बदी अमावस थी और दिन था खास दिवाली का

आँख्यां के मा आँसू आगे घर देख्या जब हाली का ....................................। 

२-

अमीर आदमी बालकां खात्यर खील-खिलोणे ल्यावैं थे 

दो बाळक बैठे देहळी पै उनकी तरफ़ लखावैं थे

काल रात की बची खिचड़ी वै घोळ षीत मैं खावैं थे 

मस्ती मैं दो कुत्ते बैठे वैं भी कान हय्लावैं थे

अरै एक कटोरा, एक बखोरा; उड़ै काम नहीं था थाळी का  .................................। 


३-

आज खिलोणे रै नहीं मय्लै कर बच्चे यो वष्वास गए 

दोनूं भाई ऊठ उड़े तै कर माता धोरै आस गए

माँ बोली उसके जी नै रे रोल्यो जिसके जाए नास गए

रै दोनूं भाई चाळ उड़े तै झट् बाबु के पास गए

इतणी सुण कै चाळ पड़्या वो पति दिमाणे आळी का.............................। 


४-

बाणिया बोल्या सुणो चौधरी कुछ भी सौदा ना ल्याया

गरीब जाण कै रस्ते मै किते होका तक भी न प्याया 

सय्र करड़ाई चढ़ी देख उस दुख्या का दय्ल घबराया  

गाम छोड कै चल्या गया वो फेर बहौड कै न आया  

श्री ज्ञानीराम कहै चमन उज्ड़ गया पता चल्या ना माळी का ...............................। 


कातिक बदी अमावस थी और दिन था खास दिवाली का

आँख्यां के मा आँसू आगे घर देख्या जब हाली का 

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सभी रागनी प्रेमिये को ललित जांगड़ा की तरफ से राम राम , हम हरियाणा वासी है और हमारी संस्कृति एक स्यान है, और मुझे गर्व है की में हरियाणा की पवन संस्कति में पला बड़ा हु , मेरी संगीत कला में बहुत बहुत रूचि है में एक अच्छा बैंजो प्लेयर भी हु हिसार जिले में थुराणा गॉव का रहने वाला हु ,

हमारी संस्कृति को कायम रखने में एक छोटा सा सहयोग कर रहा हु , जो हमारे महा कलाकारों की लिखी हुई गयी हुई रागनी, भजन , सांग और अन्य अस्त लिखी कवियों की कलम दवारा पिरोये हुवे छंद आपके सामने ला रहा हु , जो आपको और हमारे कलाकारों का सहयोग करेंगी ,


में २००५ से ब्लॉग्गिंग के बारे में पड़ता आ रहा था , पड़ते पड़ते मुझको भी इस फिल्ड में इंट्रेस्ट आने लगा ऐसे ऐसे होता रहा और में ब्लॉग्गिंग की दुनिआ में उतर पड़ा और देखते ही देखते ऐसी लत लग गई की इसके बिना मुझे नींद तक नहीं आती ये सब आप लोगो का प्यार है जो मुझे यहाँ तक खींच लाया |

आप सब का तह दिल से धन्यवाद्