धर्मपुत्र कहैं नहीं -दुखी कोये जिसी दुखी त्रिया म्हारी,
इतनी सुणकै मारकण्डे नै धर्म कथा करदी जारी ।
एक अश्वपति महाराज तेजस्वी सूर्य के समान हुए,
यज्ञ करता तप करता युद्ध करता बलवान हुए,
गऊ ब्राह्मण साधु का प्यारा गुरु चरण में ध्यान हुए,
अतिथि सेवा पांच महायज्ञ शास्त्रों के ज्ञान हुए,
जितने राजा थे पृथ्वी के हर दम रहैं आज्ञाकारी ।
अस्त्र शस्त्र का ज्ञाता था कठिन लड़ाई लड़ें रन में,
विधि से रक्षा करै प्रजा की आई सो करता मन में,
सब राजों में श्रेष्ठ भूप कै कमी नहीं माया धन में,
नहीं सन्तान हुई भूप के फिकर करया करता तन में,
संहस्त्र मन्त्रों का जाप करा उन्हें कठिन ब्रत करकै भारी
इन्द्री जीत ब्रह्मचारी बण नियत आहार किया करता,
अग्नि में आहुति मन्त्रों से संहस्र बार किया करता,
दिन के छटे भाग में भोजन करकै प्यार किया करता,
18 वर्ष तक यज्ञ हवन तप मन को मार किया करता,
प्रसन्न हुई जय दर्शन दे के बोली सावित्री प्यारी ।
अग्नि में से प्रगट हो के फिर सावित्री फरमाई,
दर्शन दे दिये प्रसन्न हो के सन्मुख तेरे खड़ी पाई
लखमीचन्द ने पतिभरता की स्तुती हित से गाई,
एक कभी दो चार कभी हर बार सति होती आई,
वाहे सति जोकरे पति की रात दिनां ताबेदारी।
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सभी रागनी प्रेमिये को ललित जांगड़ा की तरफ से राम राम , हम हरियाणा वासी है और हमारी संस्कृति एक स्यान है, और मुझे गर्व है की में हरियाणा की पवन संस्कति में पला बड़ा हु , मेरी संगीत कला में बहुत बहुत रूचि है में एक अच्छा बैंजो प्लेयर भी हु हिसार जिले में थुराणा गॉव का रहने वाला हु ,
हमारी संस्कृति को कायम रखने में एक छोटा सा सहयोग कर रहा हु , जो हमारे महा कलाकारों की लिखी हुई गयी हुई रागनी, भजन , सांग और अन्य अस्त लिखी कवियों की कलम दवारा पिरोये हुवे छंद आपके सामने ला रहा हु , जो आपको और हमारे कलाकारों का सहयोग करेंगी ,
में २००५ से ब्लॉग्गिंग के बारे में पड़ता आ रहा था , पड़ते पड़ते मुझको भी इस फिल्ड में इंट्रेस्ट आने लगा ऐसे ऐसे होता रहा और में ब्लॉग्गिंग की दुनिआ में उतर पड़ा और देखते ही देखते ऐसी लत लग गई की इसके बिना मुझे नींद तक नहीं आती ये सब आप लोगो का प्यार है जो मुझे यहाँ तक खींच लाया |
आप सब का तह दिल से धन्यवाद्