कितने दिन तन्ने हो लिए मरजाणे बैरी एकली पीहर म छोडयी ,
कितने दिन तन्ने हो लिए मरजाणे बैरी एकली पीहर म छोडयी ,
रात दिन हांडू थी रोती फ़िक्र म एक घडी न सोती
न लड़ी म मोती पौलिये , तील न रेसम की पहरयी ,
चली न कदे खिणंवा क ठोडी।
सखी सब खेल थी फ़ाग , सुहाग में तेरे ब्यहदी माड़े भाग ,
राग न सारे आशिक मोह लिए , महफ़िल जिनकी थी गहरी ,
नाचती म मुड़ तूड़ के कौडीह।
तू ककित हांडे था मारया मारया , महरे घरकया न फ़िक्र था भारया
हम बारा बरस तक रो लिए , तन म बाक्की न रहई ,
चुंदड़ी न चाले की ओढी। ....
लख्मीचंद इसे छंद बिचारे , इबके मुँह लेके आज्ञा माहरे
किसे बाता के तारे छौलिये , में खुद आपबीती कहरी ,
पड़े मेरे सबर बने तू कोढ़ी।
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सभी रागनी प्रेमिये को ललित जांगड़ा की तरफ से राम राम , हम हरियाणा वासी है और हमारी संस्कृति एक स्यान है, और मुझे गर्व है की में हरियाणा की पवन संस्कति में पला बड़ा हु , मेरी संगीत कला में बहुत बहुत रूचि है में एक अच्छा बैंजो प्लेयर भी हु हिसार जिले में थुराणा गॉव का रहने वाला हु ,
हमारी संस्कृति को कायम रखने में एक छोटा सा सहयोग कर रहा हु , जो हमारे महा कलाकारों की लिखी हुई गयी हुई रागनी, भजन , सांग और अन्य अस्त लिखी कवियों की कलम दवारा पिरोये हुवे छंद आपके सामने ला रहा हु , जो आपको और हमारे कलाकारों का सहयोग करेंगी ,
में २००५ से ब्लॉग्गिंग के बारे में पड़ता आ रहा था , पड़ते पड़ते मुझको भी इस फिल्ड में इंट्रेस्ट आने लगा ऐसे ऐसे होता रहा और में ब्लॉग्गिंग की दुनिआ में उतर पड़ा और देखते ही देखते ऐसी लत लग गई की इसके बिना मुझे नींद तक नहीं आती ये सब आप लोगो का प्यार है जो मुझे यहाँ तक खींच लाया |
आप सब का तह दिल से धन्यवाद्